Thursday, January 3, 2008

तेरे साथ की आदत क्यों हो,तेरे बाद ये बातें क्यों हो,
चाशनी सी घुलती वो आवाज,फीकेपन का अहेसस बस उसके ही बाद,
हर चाय मे यूं चीनी कम क्यों हो...
तीखा तीखा सा दिन, और चुभती सी ये रात,
उनींद के वो दोपहर, और बहकी से वो शाम,
बाद ख़त्म होने के याद वो जाम क्यों हो....
घनेरे छाए मेघों के बीच तू था,भीगने से बचने मे,
और भीग जाने मे भी तू था,
भीगे बदन आज मुलाकात की कसक क्यों हो...
शूल जब तुने चुभाया तो लगा मीठा,फूल जब तुने रिझाया तो लगा महका,
महकी हुई हर सौगात पर तेरी याद क्यों हो....
कभी कहीं से शुरु, और कभी कहीं पे ख़त्म,
छूटे से अनकहे हजारों किस्से और उनके पूरे न होने की चुभन,
बाद बीत जाने के फिर कोई पैगाम क्यों हो.....
तुम वो सुबह की किरण,तुम वो मचली सी पवन,
तुमसे लौटा था मेरा बचपन, तुमसे जिया फिर से लड़कपन,
डरी हुई सी उस लड़की का, डरा सा चेहरा फिर आज ही क्यों हो...
तेरे दर को छोड़ा जान कर,तेरे घर को पराया मान कर,
तेरे मन मे पता नहीं, कभी कोई एहसास हो न हो......

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