मोगरे की कलियाँ देखो बड़ी बड़ी
जैसी पहली वर्षा की बूँदें पड़ी
साम्य ढूंढो यदि तो कैसा साम्य
गोल गोल दोनों हैं तो,
दोनों ही परिणाम लम्बी लम्बी, तप्त दुपहरी और उमस भरी रातों का
जीतनी बढाती गरमी उतनी ही देखो तो
बढ़ी कलियाँ और गिरी बूँदें
खिलते ही इनके फैले सुवास, और गिरते ही इनके भुझे प्यास
सुवास को भर तृप्त क्या हुआ मन
क्या बुझी तप्त ह्रदय की अमित प्यास
जैसे कलियों के खिलते ही, कहीं गिरी हो पहली बूँदें वर्षा की
Thursday, January 3, 2008
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