Thursday, January 3, 2008

pehali boonden varsha ki

मोगरे की कलियाँ देखो बड़ी बड़ी
जैसी पहली वर्षा की बूँदें पड़ी
साम्य ढूंढो यदि तो कैसा साम्य
गोल गोल दोनों हैं तो,
दोनों ही परिणाम लम्बी लम्बी, तप्त दुपहरी और उमस भरी रातों का
जीतनी बढाती गरमी उतनी ही देखो तो
बढ़ी कलियाँ और गिरी बूँदें
खिलते ही इनके फैले सुवास, और गिरते ही इनके भुझे प्यास
सुवास को भर तृप्त क्या हुआ मन
क्या बुझी तप्त ह्रदय की अमित प्यास
जैसे कलियों के खिलते ही, कहीं गिरी हो पहली बूँदें वर्षा की

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