जल ही जल है, जल का तल है
लय होता है मन मेरा
सागर सम होने को इस तल मे खोने को
चाहे अब तो मन मेरा
विशालता और गहराई, जो न नापी जाए
थाह उसकी पाने को चाहे अब तो मन मेरा
या तो जानू तत्व को इसके
या हो जाऊं मैं भी यही
चाहूँ ये ही हो मेरी अंत इति
Thursday, January 3, 2008
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