क्या कहें क्या लिखा.....
था जो कब मिट गया...
अब खामोशियाँ ही सही.....
बाकि कुछ भी नहीं....
जाने कब चल पड़े.....
थे रुके कारवां.....
चुक गए सरे लम्हे....
रहे जब दरमियाँ....
रेत पर ही लिखा.....
था जो सब मिट गया...
Thursday, January 3, 2008
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