Friday, November 10, 2017

चलते हुए मुड़ना नहीं

जब तुम जाओ , चलते हुए मुड़ना नहीं...
मेरे बारे में सोचना,
जानना की मैं तुम्हारी ओर ही ताकती होऊँगी।
पर तुम चलना अपनी ही डगर ,

जब हमारे पथ मिलें कभी
मुझे फिर उतना ही सम्मान देना
फिर वही मान करना मेरा
पर मेरे साथ चलने की हठ न करना

मेरे मन और तुम्हारे मन में ये सब रखना
अपने उच्छवासों को किसी से न जतलाना
बस अच्छी स्मृति रखना
साथ की आकांक्षाएं न करना

चलते हुए मुड़ना नहीं
अपनी डगर चलते ही रहना 

Wednesday, March 15, 2017

संकेत से बोध

 शून्यता का आभास सांकेतिक है
यह संकेत है जीवन के अपूर्णता का
यह पूर्णता का प्रतिबिम्ब भी है
यह समय की सत्यता का प्रतीक है
एवं निर्जीवता का साक्षी भी है
यह है वह छण प्रिय के संग का
और यही है सतत विछोह का
यह वह बिंदु है जिस पर ज्या चली
और यही उस परिधि की धुरी

शून्यता का आभास सांकेतिक है
यह मृदा की मृदुता एवं सुगंध है
यही मन में जमी मृदा का उच्छवास है

यह संकेत छण भंगुर है रहता नहीं
नष्ट हुए संकेत भी शून्य ही हैं
शून्यता के बोध में संकेत नहीं है
क्योंकि तब सब ही शून्य में लय है