Thursday, January 3, 2008

pehchan

मैं कितनों को जानती हूँ
कितने चहरे, कितनी बातें,
कितने ही व्यक्तिव और कृतित्व
जानूं कितनों को और कितने मुझे जाने
अपने अंतरतम मे झान्कूं देखूं,
क्या जाना मैंने ख़ुद को?जानूं किसको,
ख़ुद से अनजान रह कर?
सब मुझे जाने ये चाहूँ कैसे?
ख़ुद ही ख़ुद को न जान कर.
ख़ुद को जानूं, तब उसको जानू,
तब कोई जाने न जाने मुझको

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