आवरण वो हल्का सा
जो मैंने ओढ़ रखा
जग से छुपी कि आप से
ये कौन जाने सखा
साख्य की सौं तुम्हे
जो तुमने किसी से कहा
अस्तित्व मेरा ये
जबकि मेरा ही न रहा
फीर कोई क्यूँ कोई पूछे
क्या किससे और क्यूँ
रहा ढंका छुपा उघडा
दिखा कुछ और कुछ समझा
रचा कुछ और कुछ और बना
जो तुम्हे पता और मुझे पता
साख्य की सौं तुम्हे
जो तुमने किसी से कहा
Wednesday, November 19, 2008
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2 comments:
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जो तुम्हे पता और मुझे पता
साख्य की सौं तुम्हे
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