रख छोडा मेरे संशय को मैंने जहाँ
वो वैसे ही रहा पड़ा वहीँ का वहां
तुमने तो था उसे देखा, वो और उसका
अनचाहा प्रतिभूत... सिमट सहम
दृष्टी को तुम्हारी ही तरसा वो रोम रोम
निर्दिष्ट भावनाओ के लिए है ही क्या
उत्तरों की आस मे ये अस्तित्व
अनुत्तरित अनेक प्रश्नों के प्रतिबिम्ब
और उनके बीच
ये संशय मेरे ह्रदय का
चले कभी खींच और कभी भींच
Monday, October 13, 2008
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4 comments:
अपनी प्रथम पंक्ति के द्वितीय शब्द को जल्दी से ठीक कर लें कोई और पढे उसके पहले .
रख छोड़ा मेरे संशय को मैंने जहाँ
वो वैसे ही रहा पड़ा वहीँ का वहां
तुमने तो था उसे देखा, वो और उसका
अनचाहा प्रतिभूत... सिमट सहम
दृष्टी को तुम्हारी ही तरसा वो रोम रोम
निर्दिष्ट भावनाओ के लिए है ही क्या
उत्तरों की आस मे ये अस्तित्व
अनुत्तरित अनेक प्रश्नों के प्रतिबिम्ब
और उनके बीच
ये संशय मेरे ह्रदय का
cहाले कभी खींच और कभी भींच
बहुत बहुत सुंदर भावप्रवण पंक्तियाँ..........
उत्तरों की आस मे ये अस्तित्व
अनुत्तरित अनेक प्रश्नों के प्रतिबिम्ब
और उनके बीच
ये संशय मेरे ह्रदय का
चले कभी खींच और कभी भींच
बहुत बढिया प्रस्तुति।शुभकामना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
Dhanyawad aap sabhi ko...
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