पलायन फ़िर से,
आशाओं के झंझा से दूर
प्रत्याशा के बोझ से मजबूर
मेरे मन का विद्रोह ये
छूटते अवसरों का प्रतिरोध
ये चुपचाप रुंदन
छोड़ अब...
जीवन चल पड़ाव नहीं अब
सामने बढ़ ... की बस चल ही चल
पलायन फ़िर से
बिखरे yऔवानो के परे
गूंजते कलरवों से दूर
अब बह बस बह...
और कल कल
पलायन है अस्तित्व से ही
अब से अब से
Tuesday, September 30, 2008
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1 comment:
अति सुन्दर !
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