प्रणय के प्रतिछण, मैंने देखि तुम्हारी आस
रमण का मधुबन हुआ तुम्हारे बिन उदास
रहे वही पर अनछुए , जब चुने पर थर्राई
लता ने कह दी , जैसे मेरे मन की बात
रहे जो विचलित, कभी सशंकित, बिलखे अब तो ये प्रलाप
कहे मंजरी फूट फूट सारे अंगों मे आलाप
गुंजन मधुर था, जो जाने कब बना चीत्कार
रहे जो प्रिय मेरे बन, नहीं है बस का
संग रह निस्संग वास ...
2 comments:
achchi post
बहुत उम्दा.
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