Thursday, August 28, 2008

बहके ही बहके

बिखरी बिखरी सी तहें

उलझी उलझी सी लटें

छूटे छूते वो कहकहे

जाने कब के अनकहे

वो साथ रहें बस यही मन कहे

फ़िर फ़िर हम उनकी राह मुडे

कभी मन और कभी कदम चले

मिल मिल कर भी मिलाने को तरसे

कभी मह कभी नेह बरसे

किसे पता की हैं सधे या हैं बहके

4 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया.लिखते रहें.

Nitish Raj said...

good one...

Anonymous said...

Bahut Achchha ..., Badhai

nehasaraswt said...

aap sabhi ka dhanyawad, :)