Tuesday, December 29, 2009

लाल

रस और लस मे अटका है
और
रस और लस मे भटका है
झोंक से आ कर लिपटा है
और
झोंक से ही तो भभका है
पलट के ताप सा गर्म भी है
और
लपट की ऑट सा ठंडा है
तेज है और क्रोध भी है
और
रजस है और काम भी है
व्यग्र यही है, है निश्चित भी
अरे यह
तत्पर भी है पर निश्चिन्त नहीं
माता का है तो दुलार है
और
गोदरी का है तो छुपाव है
लाल है जी लाल है
हाँ ये
लाल ही तो है

4 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया!!



यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

Kerstin Klein said...

Thanks so much for oining the project. I wish I could understand the poem.

Kerstin Klein said...

http://whatisredforyou.blogspot.com/2010/01/red-rot.html

nehasaraswt said...

@Kerstin : thanks for publishing.