धीमी कभी , तेज़ कभी
मेरे लिए रही अपरिचित,
अब तक रही अनमनी,
सोची नही, पढ़ी भी नहीं
अचानक दिखी, कभी अनछुई
फ़िर लगी परायी सी
जो जानी नहीं गई,
सो मानी नहीं गई,
लड़ी विधि से और हारी,
अगली बार की फ़िर तय्यारी,
लड़, हार कर, बार बार,
बात मुझसे, कभी मानी नहीं गई
Wednesday, November 11, 2009
Thursday, November 5, 2009
लिपटी सी याद
पीली सी खिड़की और नीला दरवाजा
छुप सी चुपके से होती वो आह्ट
कहती वो आह्ट की अब आजा
आजा की बस नहीं कटती ये बैन
आजा के जाने क्या ढूढे ये नैन
चुनरी वो दुबकी सी सिमटी सी
लिपटी जो मुझसे यूँ चुभती सी
दिन से छुपाती, रात से बचाती
पर नहीं तेरी याद से... छोडे जो तरसाती सी
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