Saturday, October 24, 2009

आज का ये दिन

आज का ये दिन नहीं
श्रृंगार का, अनुराग का,
थामे हुए हांथों का,
और यु ही के मुस्काने का
पास के दुलार का,
और मन के मनुहार का,
ये सब करेंगे फ़िर कभी
ये है सरे भूतों की गति
बात जैसी की स्मृति ... झूठी सच्ची
ये समय है कार्य का, वृत्ति का ...
भागने का, पाने का
चैन इसमे ही है अभी
बाकि करेंगे फ़िर कभी ...
नहीं अभी... नहीं अभी

5 comments:

M VERMA said...

बाकि करेंगे फ़िर कभी ...
नहीं अभी... नहीं अभी
पर फिर कब -- भागने के किस मोड पर

Udan Tashtari said...

उम्दा ख्याल!

संगीता पुरी said...

अच्‍छी रचना !!

nehasaraswt said...

@Varmaji : aaj ke liye nahin ye sari baten par hongi to kabhi. man me hain to ho hi jayengi kabhi na kabhi...
@UT and Sangeetaji: Dhnyawad aapka

Unknown said...

hey good one;-))))