गया तत्त्व मेरा
कुछ रहा नहीं
चुका वो कहकहा
रुदन ही सही
फ़िर से लिखा
मिटाया फ़िर कभी
ऊहापोह से भरा
और संशय भी वहीं
आछेप बिना प्रमाण
क्या अनुमान हैं सहीं ?
चल पड़े थे जहाँ
लौट के पहुंचे वहीँ...
उम्मीद से मन भरा
शुरुआत फ़िर नई ... अब सही
Sunday, January 11, 2009
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6 comments:
बहुत सुंदर...।
sahi main bahut hi sundar rachna....aise hi likhte rahe....
वाह ! बहुत ही सुंदर भावभरी रचना है. शुभकामनाये.
सुंदर शब्द और उतने ही पुर असर भाव...वाह..
नीरज
आरम्भ की निःश्वांस यदि उछाह की, विश्वास की उपलब्धि बन जाय तो अच्छा ही है.
सुन्दर रचना.
बेहतरीन रचना बहुत ही सुंदर शब्द
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