Wednesday, September 24, 2008

चाह गुम राह गुम

वो रात के चार कदम आवारा
वो भूली बातें और बातों का व्यारा
वो गूंजे निशब्द
और शांत से अंतर्द्वंद
वो चलाचल का साथ
और साथ का दुराव
जब वो चले झुन झुन
जब वो गुमे गुम गुम
तुमने दिया जो थोड़ा कुछ
तुमसे लिया जो वो सब कुछ
ताक पर सब क्यूँ.... चाह ही गुम क्यूँ
राह जब बदली तो राह ही गुम क्यूँ.

2 comments:

विवेक सिंह said...

अति सुन्दर !

रंजना said...

वाह,सुंदर भावपूर्ण पंक्तियाँ.