बिखरी बिखरी सी तहें
उलझी उलझी सी लटें
छूटे छूते वो कहकहे
जाने कब के अनकहे
वो साथ रहें बस यही मन कहे
फ़िर फ़िर हम उनकी राह मुडे
कभी मन और कभी कदम चले
मिल मिल कर भी मिलाने को तरसे
कभी मह कभी नेह बरसे
किसे पता की हैं सधे या हैं बहके
बहुत बढिया.लिखते रहें.
good one...
Bahut Achchha ..., Badhai
aap sabhi ka dhanyawad, :)
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4 comments:
बहुत बढिया.लिखते रहें.
good one...
Bahut Achchha ..., Badhai
aap sabhi ka dhanyawad, :)
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