आज का ये दिन नहीं
श्रृंगार का, अनुराग का,
थामे हुए हांथों का,
और यु ही के मुस्काने का
पास के दुलार का,
और मन के मनुहार का,
ये सब करेंगे फ़िर कभी
ये है सरे भूतों की गति
बात जैसी की स्मृति ... झूठी सच्ची
ये समय है कार्य का, वृत्ति का ...
भागने का, पाने का
चैन इसमे ही है अभी
बाकि करेंगे फ़िर कभी ...
नहीं अभी... नहीं अभी
Saturday, October 24, 2009
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