Tuesday, March 3, 2009

धूप सी

छ्न छ्न के चौखट सी
गिरी धुप चाँदनी पे उजली
ऊष्ण ऊष्ण हुए जो रोम
रोम जो उड़ कर बिखरी
तरल की ऐसी बह जायेगी
विरल ये हाँथ नहीं आएगी
कभी तो बांहों बिछ जायेगी
कभी दूर सिमट जायेगी
अनुराग से रोको
बंधो वाष्प बन
मेघ सा घेरो तो
रहेगी तुम्हारी बन

4 comments:

Mohinder56 said...

अनुराग से रोको
बंधो वाष्प बन
मेघ सा घेरो तो
रहेगी तुम्हारी बन

सुन्दर शब्दों से सजी रचना.

Vinay said...

थोड़ी उष्ण थोड़ी मध्दम धूप सी गुनगुनी नज़्म

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चाँद, बादल और शाम

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर ..;

nehasaraswt said...

dhanyawad aapka.