झर झर के झरा
सारा दंभ
सालों संजोया
देखो टूटा वो छम छम
जोड़े से जुड़े न फ़िर
तंतु ये जर
जिया इसे जब था
मैंने मन भर
अब जो ये छूटा
दिखे जीवन इसके पार
शांत ! शांत! मन के ओ ! द्वंद
जीवन है सम्भव
अपितु सहज, बिना दंभ
Wednesday, January 14, 2009
Sunday, January 11, 2009
फ़िर सही
गया तत्त्व मेरा
कुछ रहा नहीं
चुका वो कहकहा
रुदन ही सही
फ़िर से लिखा
मिटाया फ़िर कभी
ऊहापोह से भरा
और संशय भी वहीं
आछेप बिना प्रमाण
क्या अनुमान हैं सहीं ?
चल पड़े थे जहाँ
लौट के पहुंचे वहीँ...
उम्मीद से मन भरा
शुरुआत फ़िर नई ... अब सही
कुछ रहा नहीं
चुका वो कहकहा
रुदन ही सही
फ़िर से लिखा
मिटाया फ़िर कभी
ऊहापोह से भरा
और संशय भी वहीं
आछेप बिना प्रमाण
क्या अनुमान हैं सहीं ?
चल पड़े थे जहाँ
लौट के पहुंचे वहीँ...
उम्मीद से मन भरा
शुरुआत फ़िर नई ... अब सही
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