बिखरी बिखरी सी तहें
उलझी उलझी सी लटें
छूटे छूते वो कहकहे
जाने कब के अनकहे
वो साथ रहें बस यही मन कहे
फ़िर फ़िर हम उनकी राह मुडे
कभी मन और कभी कदम चले
मिल मिल कर भी मिलाने को तरसे
कभी मह कभी नेह बरसे
किसे पता की हैं सधे या हैं बहके
बिखरी बिखरी सी तहें
उलझी उलझी सी लटें
छूटे छूते वो कहकहे
जाने कब के अनकहे
वो साथ रहें बस यही मन कहे
फ़िर फ़िर हम उनकी राह मुडे
कभी मन और कभी कदम चले
मिल मिल कर भी मिलाने को तरसे
कभी मह कभी नेह बरसे
किसे पता की हैं सधे या हैं बहके
प्रणय के प्रतिछण, मैंने देखि तुम्हारी आस
रमण का मधुबन हुआ तुम्हारे बिन उदास
रहे वही पर अनछुए , जब चुने पर थर्राई
लता ने कह दी , जैसे मेरे मन की बात
रहे जो विचलित, कभी सशंकित, बिलखे अब तो ये प्रलाप
कहे मंजरी फूट फूट सारे अंगों मे आलाप
गुंजन मधुर था, जो जाने कब बना चीत्कार
रहे जो प्रिय मेरे बन, नहीं है बस का
संग रह निस्संग वास ...