पास हुए की बहुत दूर हो गए
खास हुए की बहुत रोज हो गए
कब कही थी कभी दिल की बात हमसे
कभी चुभी तब यूँ ही कही बात ... कबसे
कभी बहुत थे खुश कभी ग़मगीन हो गए
न चंद राहें आम सी होती
न चंद आहें राज की होती
कभी जो हम थे गुम और कभी मशहूर हो गए
किनारों पर खड़े देखने की आदत न थी
इक लहर से जो लड़े तो चूर हो रहे
Wednesday, July 23, 2008
Wednesday, July 2, 2008
बर्र और मधुमखी
एक समय की बात
बर्र ने मधुमख्ही से प्रश्न किया
तू भोंडी मैं सुघड़ नवेली
चमकदार हैं पर मेरे
फ़िर भी जाने क्यूँ नर मानस चर
गुन ग्राहक हैं बस तेरे
मतलब का है खेल सखी री
मतलब से ही सूझ
सुन मधुमख्ही ये कहती है
मैं देती हूँ मधु लोगों को
तू केवल दस लेती है
बर्र ने मधुमख्ही से प्रश्न किया
तू भोंडी मैं सुघड़ नवेली
चमकदार हैं पर मेरे
फ़िर भी जाने क्यूँ नर मानस चर
गुन ग्राहक हैं बस तेरे
मतलब का है खेल सखी री
मतलब से ही सूझ
सुन मधुमख्ही ये कहती है
मैं देती हूँ मधु लोगों को
तू केवल दस लेती है
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