पन्नों की बिखरी तहें
खुली फिर फिर से,
हर तह एक कहानी
सुनी ख़ुद ही, ख़ुद कह के.
सुन्न वो हाँथ, कम्पित तन,
सशंकित मन,
समझाइश न जाने , किस किस से.
चलते द्वंद , भयंकर तम,
गूंजे भूकंप, प्रति स्वास मे.
कब हो प्रयाण ,
निश्चित कुछ ज्ञान,
कुछ जन, कुछ अनजान
अब रहे कब से, भूले कब से.
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