Thursday, May 15, 2008

अनजाने पन्ने मेरे घर मे

पन्नों की बिखरी तहें

खुली फिर फिर से,

हर तह एक कहानी

सुनी ख़ुद ही, ख़ुद कह के.

सुन्न वो हाँथ, कम्पित तन,

सशंकित मन,

समझाइश न जाने , किस किस से.

चलते द्वंद , भयंकर तम,

गूंजे भूकंप, प्रति स्वास मे.

कब हो प्रयाण ,

निश्चित कुछ ज्ञान,

कुछ जन, कुछ अनजान

अब रहे कब से, भूले कब से.

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