शून्यता का आभास सांकेतिक है
यह संकेत है जीवन के अपूर्णता का
यह पूर्णता का प्रतिबिम्ब भी है
यह समय की सत्यता का प्रतीक है
एवं निर्जीवता का साक्षी भी है
यह है वह छण प्रिय के संग का
और यही है सतत विछोह का
यह वह बिंदु है जिस पर ज्या चली
और यही उस परिधि की धुरी
शून्यता का आभास सांकेतिक है
यह मृदा की मृदुता एवं सुगंध है
यही मन में जमी मृदा का उच्छवास है
यह संकेत छण भंगुर है रहता नहीं
नष्ट हुए संकेत भी शून्य ही हैं
शून्यता के बोध में संकेत नहीं है
क्योंकि तब सब ही शून्य में लय है
यह संकेत है जीवन के अपूर्णता का
यह पूर्णता का प्रतिबिम्ब भी है
यह समय की सत्यता का प्रतीक है
एवं निर्जीवता का साक्षी भी है
यह है वह छण प्रिय के संग का
और यही है सतत विछोह का
यह वह बिंदु है जिस पर ज्या चली
और यही उस परिधि की धुरी
शून्यता का आभास सांकेतिक है
यह मृदा की मृदुता एवं सुगंध है
यही मन में जमी मृदा का उच्छवास है
यह संकेत छण भंगुर है रहता नहीं
नष्ट हुए संकेत भी शून्य ही हैं
शून्यता के बोध में संकेत नहीं है
क्योंकि तब सब ही शून्य में लय है