Tuesday, March 8, 2011

तुम्हारी धूप

री धूप छनी, छन कर गिरी,

तीखी अब तक हुई नहीं

सोह सोह , सोह के सोखी

पूरे तन को गरमाई, जब जब मैं इसमे नहाई,

छू गई और अंतर मे समाई

कभी तो लगी भली

कभी तनिक न सुहाई

मेरे मन मे प्रिय के संग सी

प्रिय के बिना भला क्यूँ आई

छुपी दुबकी मैं बची इस से अब भागी

नहीं नहीं बिन तुम मुझे धुप न भाई

3 comments:

Unknown said...

kuchh dhoop si kuchh alsayi shaam si
woh jo tere ootho pe baithi us muskan si
mere sirhaane jo jaage us yaad si
kucch yaade :)

Siddhartha Joshi said...

Wow...this is really nice Neha :) I had no clue you wrote so much Hindi poetry...

Santosh Kumar said...

Very sweet poetry..thanks for sharing.

Check my Hindi poetry blog at :
www.belovedlife-santosh.blogpost.com.

I would welcome and appreciate your comments.