Thursday, August 28, 2008

बहके ही बहके

बिखरी बिखरी सी तहें

उलझी उलझी सी लटें

छूटे छूते वो कहकहे

जाने कब के अनकहे

वो साथ रहें बस यही मन कहे

फ़िर फ़िर हम उनकी राह मुडे

कभी मन और कभी कदम चले

मिल मिल कर भी मिलाने को तरसे

कभी मह कभी नेह बरसे

किसे पता की हैं सधे या हैं बहके

Wednesday, August 27, 2008

संग का निस्संग

प्रणय के प्रतिछण, मैंने देखि तुम्हारी आस

रमण का मधुबन हुआ तुम्हारे बिन उदास

रहे वही पर अनछुए , जब चुने पर थर्राई

लता ने कह दी , जैसे मेरे मन की बात

रहे जो विचलित, कभी सशंकित, बिलखे अब तो ये प्रलाप

कहे मंजरी फूट फूट सारे अंगों मे आलाप

गुंजन मधुर था, जो जाने कब बना चीत्कार

रहे जो प्रिय मेरे बन, नहीं है बस का

संग रह निस्संग वास ...